Wednesday, March 19, 2008

कैसे कहूँ

प्रेरणा तुम हो
मेरी हर कविता के
तुम्हे ही सोचती हूँ मैं
हर पल हर घड़ी
तुम्हे ही लिखती हूँ मैं
अपने हर अक्षर में
हर शब्द में
और उन शब्दों की माला
बना तुम्हे
अर्पण करती हूँ
अपनी हर कविता में ।
झलक मिल जाती है
तुम्हारी,
मेरी हर कविता में
अब और कैसे कहूं
की सोच मेरी तुमसे हैं?
कवितायेँ सारी तुमसे हैं?
और ज़िंदगी मेरी तुमसे है????