तन्हाई में बैठे हुए
कुछ बातों को सोचा मैंने
उन बातों के धागे में
कुछ शब्द पिरोये मैंने
और देखते ही देखते
एक कविता बन गई ।
ये शब्द कुछ और नही
मेरे मन के जज्बात हैं
मेरे मन की कल्पनाएं हैं
और उन कल्पनाओं की उड़ान है
ऐसे ही पंख फैलाये मैंने
और देखते ही देखते
एक कविता बन गई............
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