Friday, March 14, 2008

कविता

तन्हाई में बैठे हुए

कुछ बातों को सोचा मैंने

उन बातों के धागे में

कुछ शब्द पिरोये मैंने

और देखते ही देखते

एक कविता बन गई ।

ये शब्द कुछ और नही

मेरे मन के जज्बात हैं

मेरे मन की कल्पनाएं हैं

और उन कल्पनाओं की उड़ान है

ऐसे ही पंख फैलाये मैंने

और देखते ही देखते

एक कविता बन गई............

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