Wednesday, March 19, 2008

सिर्फ़ कुछ पल

कुछ पल साथ चलने की
कामना की थी मैंने
दो घड़ी सुख की
लालसा थी मन में
देकर आवाज़ जब
मुझे पुकारा तुमने
रोम रोम खिल उठे
मधुर ख्वाब लगे सजने
असंख्य फूल खिल उठे
मेरे जीवन निर्जन में
पर मेरी जगह किसी और के
साथ चल दिए तुम हाथ थामे
तभी से मैं घुलती हूँ
दिल घुटता इसी गम में
क्या तुम्हारी धन दौलत मांगी थी?
क्या तुमसे चाँद माँगा था मैंने ?
नही न!
सिर्फ़ कुछ ही पल साथ चलने की
कामना की थी मैंने
दो घड़ी सुख की ही
लालसा थी मन में
सिर्फ़ कुछ ही पल न !!!!

1 comment:

Dev said...

Bahut dard hai arundhati...abhi thora lively likhne ki umra hai...