कुछ पल साथ चलने की
कामना की थी मैंने
दो घड़ी सुख की
लालसा थी मन में
देकर आवाज़ जब
मुझे पुकारा तुमने
रोम रोम खिल उठे
मधुर ख्वाब लगे सजने
असंख्य फूल खिल उठे
मेरे जीवन निर्जन में
पर मेरी जगह किसी और के
साथ चल दिए तुम हाथ थामे
तभी से मैं घुलती हूँ
दिल घुटता इसी गम में
क्या तुम्हारी धन दौलत मांगी थी?
क्या तुमसे चाँद माँगा था मैंने ?
नही न!
सिर्फ़ कुछ ही पल साथ चलने की
कामना की थी मैंने
दो घड़ी सुख की ही
लालसा थी मन में
सिर्फ़ कुछ ही पल न !!!!
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1 comment:
Bahut dard hai arundhati...abhi thora lively likhne ki umra hai...
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