Saturday, December 13, 2008

इस रात की स्याही में ..........

अँधेरी रात की स्याही में ,
डुबायी हमने अपनी कलम ,
और आंसुओं के पन्ने पर,
लिखती रही अपने ज़ख्म .
जो चोटें मेरे जिगर ने खायीं ,
दुनिया ने दिये हैं कम .
अपनों ने ही दिया तोहफे में ,
दर्द,कसक और सितम .
जितने जुल्म हुए, कहर ढाया,
उन्हें चुपचाप सहते रहे हम .
खून से रंगा हुआ तार तार ये मन ,
हँसते थे होंठ मगर ,,
आंखें रहीं नम .
ख़ाक में मिले सारे दिली-अरमान ,
जिंदा रहा फ़िर भी ये जिस्म .
इस रात की काली स्याही में ,
स्याह हुए हम......स्याह हुए हम.................!!!!

Monday, October 6, 2008

मेरे अन्दर का भय

मेरे अन्दर का भय
हो जाता है प्रखर
मेरे हर सपने में
चौंक कर उठ जाती हूँ
मैं हर रात सोते सोते ......!

मैं दिल में दर्द समेटे
घुटती रहती हूँ अपने में
अब तो सूख गए हैं
आंसू सारे
मेरी आंखों के रोते रोते .........!

खुशियों की हरियाली मैंने
मांगी थी मेरे अपनों से
पर हो गई बंजर जमीन
वो फसल बोते बोते ..........!

हसरत तो नही थी पाने की
चाँद , सितारे
और तुम्हे
पर चाहती हूँ मैं जो भी
वह रह जाता है होते होते ..............!

मेरा कहीं कोई नही है......

इस विराट संसार में
मैं अकेली
मेरा कहीं कोई नही है
सूने मन के , सूने जीवन के
इस जिंदगी के
एक एक पल को जीती
मैं अकेली
मेरा कहीं कोई नही है.....
न दोस्त - हित
ना रिश्ते नाते
जीवन के इस डोर में
अपनी एक एक साँस पिरोती
मैं अकेली
मेरा कहीं कोई नही है ..........................!

Wednesday, March 19, 2008

कैसे कहूँ

प्रेरणा तुम हो
मेरी हर कविता के
तुम्हे ही सोचती हूँ मैं
हर पल हर घड़ी
तुम्हे ही लिखती हूँ मैं
अपने हर अक्षर में
हर शब्द में
और उन शब्दों की माला
बना तुम्हे
अर्पण करती हूँ
अपनी हर कविता में ।
झलक मिल जाती है
तुम्हारी,
मेरी हर कविता में
अब और कैसे कहूं
की सोच मेरी तुमसे हैं?
कवितायेँ सारी तुमसे हैं?
और ज़िंदगी मेरी तुमसे है????

सिर्फ़ कुछ पल

कुछ पल साथ चलने की
कामना की थी मैंने
दो घड़ी सुख की
लालसा थी मन में
देकर आवाज़ जब
मुझे पुकारा तुमने
रोम रोम खिल उठे
मधुर ख्वाब लगे सजने
असंख्य फूल खिल उठे
मेरे जीवन निर्जन में
पर मेरी जगह किसी और के
साथ चल दिए तुम हाथ थामे
तभी से मैं घुलती हूँ
दिल घुटता इसी गम में
क्या तुम्हारी धन दौलत मांगी थी?
क्या तुमसे चाँद माँगा था मैंने ?
नही न!
सिर्फ़ कुछ ही पल साथ चलने की
कामना की थी मैंने
दो घड़ी सुख की ही
लालसा थी मन में
सिर्फ़ कुछ ही पल न !!!!

Monday, March 17, 2008

अमूल्य निधि

मेरे मन में कई
कमरे बने हैं
और हर कमरे में
बसी हैं कुछ यादें
यादें कुछ खट्टी सी
कुछ मीठी और
कुछ कड़वी भी।
जब जिस याद से
मिलने का मन करे
मन के उस कमरे का
दरवाज़ा खोल लेती हूँ
और अपने कमरे का
दरवाज़ा बंद कर
पड़ी रहती हूँ अंधेरे में ।
बीती पुरानी बातों संग खेलना
अच्छा लगता है मन को
और मुझे मन की सारी
हरकतें अच्छी लगती हैं
सिवा इसके की मैं
जिन्हें भूलना चाहती हूँ
उनको भी सहेज कर
रखता है मन अपने
कमरे की तिजोरी में
मानो वो कोई अमूल्य निधि हों .....................

Friday, March 14, 2008

वास्ता

न प्यारा कोई रिश्ता
और न ही नाता कोई
हैं सभी पास मेरे
पर दिल को न भाता कोई
तुम साँसों में मेरे
बसे हो इस कदर
बिना तेरे कभी न
हो मेरी सहर
फिजा में घुले हैं
हमारे उल्फत के दास्ताँ कई
फ़िर कैसे कह दूँ मैं
की मेरा तुमसे कोई वास्ता नही ?

कविता

तन्हाई में बैठे हुए

कुछ बातों को सोचा मैंने

उन बातों के धागे में

कुछ शब्द पिरोये मैंने

और देखते ही देखते

एक कविता बन गई ।

ये शब्द कुछ और नही

मेरे मन के जज्बात हैं

मेरे मन की कल्पनाएं हैं

और उन कल्पनाओं की उड़ान है

ऐसे ही पंख फैलाये मैंने

और देखते ही देखते

एक कविता बन गई............

Wednesday, March 12, 2008

वक़्त

पाल रखे थे कुछ ख्वाब
उसने अपनी पलको तले
छुपा कर रखा सबसे ताकि
कभी किसी की नज़र न लगे
उमर बढ़ रही थी
ख्वाब संग उसकी भी
पर इस से पहले की वक़्त आता
उन ख्वाबों को पूरा करने का
उनके सुनहरे पंखो को
काट दिया घरवालों ने
कर दिया उसका विवाह
सोलह वर्ष की उमर में
पैंतीस वर्ष के आदमी से
ab पलकों में छुपे ख्वाब
पलकों में ही दफन हो गए
और सबने सोचा
वो रोई क्यूंकि
वक़्त था उसकी विदाई का................

Monday, March 3, 2008

cause of rain

why is is raining?
to show the world,
a broken heart is paining.

the tears of the sky
falling down to earth
to tell the world
about death n birth{death of emotions n birth of a feeling less life}

but this rain water too
is unable to
extinguish the fire of my heart
instead , the flow of tears
has begun to start...........
thats why its raining
and thats why its paining.........!