प्यारे निराले रंग बिरंगे
ख्वाब सजा कर रखे थे मैंने
पर आंसुओं की कुछ बूंदों से
तस्वीर धुंधली सी हो गई थी ।
धुल गए रंग सारे
मेरे ख्वाब फीके पड़ गए
मिटते गए सारे ख्वाब
और मैं देखती ही रह गई थी ।
मुट्ठी से रेत की भांति
समय छुटता जा रहा था
ख्वाब सारे मेरे अधूरे
पूर्णता प्राप्त करने को तरस गए थे ।
मैंने अपनी आँखों से उन्हें
तिल तिल मरते देखा था
और चुपचाप कायरों की तरह
मैं उनके जनाजे पर रोई थी ।
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