मेरे अन्दर का भय
हो जाता है प्रखर
मेरे हर सपने में
चौंक कर उठ जाती हूँ
मैं हर रात सोते सोते ......!
मैं दिल में दर्द समेटे
घुटती रहती हूँ अपने में
अब तो सूख गए हैं
आंसू सारे
मेरी आंखों के रोते रोते .........!
खुशियों की हरियाली मैंने
मांगी थी मेरे अपनों से
पर हो गई बंजर जमीन
वो फसल बोते बोते ..........!
हसरत तो नही थी पाने की
चाँद , सितारे
और तुम्हे
पर चाहती हूँ मैं जो भी
वह रह जाता है होते होते ..............!
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2 comments:
nice yaar...read all of them.....carry on..
shandar...
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