Wednesday, September 30, 2009

ना जाने क्यूँ ?

तुम्हारी आँखें मुझे बुलाती हैं
मैं ख़ुद को रोक नही पाती हूँ
तुम्हारे पीछे खिंची चली जाती हूँ
उस हिरनी की तरह मेरे लिए भी तुम
हो एक मृगतृष्णा ये जानती हूँ
फ़िर भी ख़ुद को रोक नही पाती हूँ
तुम्हारे पीछे खिंची चली जाती हूँ
उस चातक की तरह स्वाति की एक बूँद के लिए
प्यासी ही मरी जाती हूँ
फ़िर भी दिल को बहला नही पाती हूँ
कहीं और प्यास बुझा नही पाती हूँ
तुम्हारे पीछे खिंची चली जाती हूँ
ये जानकर भी की तुम मेरे नही हो
न ही कभी हो सकते हो
मन को समझा नही पाती हूँ
तुम्हारे पीछे खिंची चली जाती हूँ
ना जाने क्यूँ ????????

No comments: