Monday, October 6, 2008

मेरे अन्दर का भय

मेरे अन्दर का भय
हो जाता है प्रखर
मेरे हर सपने में
चौंक कर उठ जाती हूँ
मैं हर रात सोते सोते ......!

मैं दिल में दर्द समेटे
घुटती रहती हूँ अपने में
अब तो सूख गए हैं
आंसू सारे
मेरी आंखों के रोते रोते .........!

खुशियों की हरियाली मैंने
मांगी थी मेरे अपनों से
पर हो गई बंजर जमीन
वो फसल बोते बोते ..........!

हसरत तो नही थी पाने की
चाँद , सितारे
और तुम्हे
पर चाहती हूँ मैं जो भी
वह रह जाता है होते होते ..............!

मेरा कहीं कोई नही है......

इस विराट संसार में
मैं अकेली
मेरा कहीं कोई नही है
सूने मन के , सूने जीवन के
इस जिंदगी के
एक एक पल को जीती
मैं अकेली
मेरा कहीं कोई नही है.....
न दोस्त - हित
ना रिश्ते नाते
जीवन के इस डोर में
अपनी एक एक साँस पिरोती
मैं अकेली
मेरा कहीं कोई नही है ..........................!